विधानसभा चुनाव में इस बार किसके सिर पर होगा ताज और किसको मिलेगा राजनीतिक वनवास। क्या यहां भी चलेगा मोदी का जादू या फिर पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस या कांग्रेस की बनेगी सरकार। आखिर कश्मीर की राजनीति में क्या है खास। के माध्यम से हम आपको बता रहे हैं जम्मू-कश्मीर से जुड़ी हर वो बात जो जानना चाहते हैं
आप।इसी कड़ी में हम आपको सिलसिलेवार
बता रहे हैं कश्मीर के भारत में विलय की पूरी कहानी। अब तक आप पढ़ चुके हैं
महाराजा हरिसिंह की रियासत के भारत में विलय और उसके बाद कश्मीर में क्या
हालात हुए। कश्मीर और शेख अबदुल्ला के प्रति पंडित नेहरू की क्या नीति रही।
माउंटबेटन तो चाहते थे कि कश्मीर को पाकिस्तान में मिला दिया जाए, पर
सरदार पटेल सेनाध्यक्षों को किस तरह आदेश देकर कहा कश्मीर हमारा है। अब
पढ़िए इस पूरे घटनाक्रम की सातवी किश्त। जम्मू।
गोपाल स्वामी अय्यगांर ने जब महाराजा और शेख के बीच समझौते की कोशिश की तो
उन्हे लगा कि शेख अब्दुल्ला महाराजा की शर्तों को मानने वाले नहीं है।
इसलिए उन्होंने उल्टे महाराजा को ही झुकाने के सारे प्रयास केन्द्रीत कर
दिए। अय्यंगार ने सारे काम शेख की पसंद के किए। अय्यंगार ने फार्मूला रखा
कि शेख अब्दुल्ला के प्रधानमंत्रित्व में एकग संयुक्त अंतरिम सरकार की रचना
की जाए और उसके अन्य मंत्री उनकी सलाह से पसंद किए जाएं तथा संपूर्ण सत्ता
और अधिकार इस सत्ता को सौंप दिए जाएं। ये भी पढ़े - और इस तरह शुरू हुआ कश्मीर में खूनी खेल, कांग्रेसी नेता बन गया आतंकवादी चूंकि
इस व्यवस्था में भी शेख अब्दुल्ला महाराजा के वैधानिक सलाहकार मेहरचंद्र
महाजन को बर्दाश्त करने पर राजी न थे इसलिए श्री अय्यंगार ने श्री महाजन की
सेवाएं समाप्त करने का भी प्रस्ताव रख दिया। भारत सरकार द्वारा सुझाई गई
मैसूर योजना का बिल्कुल उल्टा प्रस्ताव महाराजा को भी नहीं भाया। उन्होंने
इसका विरोध किया। खासकर महाजन को हटाने के प्रस्ताव का। महाराजा, महाजन को
अपना विश्वस्थ मानते थे लेकिन श्री अय्यंगार ने महाराजा को कहा कि- हर
दृष्टिकोण से उनके (अय्यंगार) द्वारा सुझाया गया प्रस्ताव ठीक है और इसमें
यह अत्यावश्यक है कि उस अंतरिम सरकार के प्रति आप राज्य के वैधानिक मुखिया
(मात्र) के रूप में व्यवहार करें और उसकी सलाह से कार्य करें।
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