नई दिल्ली। एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को पद से हटाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन से फोन पर चर्चा की और उनसे विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसके बाद हेल्थ सेक्रेटरी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा, अतिरिक्त प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा और कैबिनेट सचिव अजीत सेठ को पांच पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। सूत्रों का कहना है कि इस मामले में प्रधानमंत्री को भी पूरी जानकारी नहीं दी गई है। कई तथ्यों को छिपाया गया है।
प्रधानमंत्री और हेल्थ मिनिस्टर के बीच
संजीव चतुर्वेदी को लेकर हुई बातचीत और उन्हें सौंपी गई रिपोर्ट की कॉपी
एनबीटी के पास है। इसमें कहीं भी बीजेपी के महासचिव जे पी नड्डा का नाम
नहीं है, जबकि हेल्थ मिनिस्ट्री के रिकॉर्ड से साफ है कि नड्डा पिछले एक
साल से संजीव को सीवीओ पद से हटाने के लिए लेटर लिख रहे थे। नड्डा ने इस
बारे में अंतिम लेटर डॉ हर्षवर्धन को हेल्थ मिनिस्टर बनने पर 25 जून को
लिखा था, जिसमें उन्होंने संजीव को सीवीओ के पद से हटाने के साथ-साथ अपनी
पसंद के नए सीवीओ लाने, संजीव को उनके कैडर वापस भेजने और संजीव के द्वारा
शुरू की गई जांचों को रोकने की मांग की थी। इस लेटर के बाद ही मिनिस्ट्री
ने संजीव को हटाने का प्रस्ताव लाया।
तीन महीने पहले जिस
हेल्थ सेक्रेटरी ने नड़्डा के लेटर के बाद 23 मई 2014 को यह निर्णय लिया था
कि संजीव की नियुक्ति में सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं,
उन्होंने ही पीएमओ को अपनी रिपोर्ट में संजीव को हटाने का पुरजोर समर्थन
किया है। हेल्थ सेक्रेटरी ने लिखा है कि संजीव की नियुक्ति को एम्स की जीबी
और आईबी से अप्रूवल नहीं थी जबकि उन्होंने 23 मई को अपनी फाइल पर लिखा है
कि संजीव की नियुक्ति को जीबी की 144वीं मीटिंग नवंबर 2010 और आईबी की
144वीं मीटिंग जनवरी 2012 में अप्रूवल मिल चुका है। रिपोर्ट में पीएमओ
को अधूरी जानकारी दी गई है जिसमें यह भी कहा गया है कि संजीव को एम्स के
सीवीओ के अतिरिक्त प्रभार से मुक्त किया गया है, जबकि इंस्टिट्यूट द्वारा 7
जुलाई 2012 को जारी नियुक्ति लेटर में स्पष्ट लिखा है कि सीवीओ का
कार्यभार ही उनका मुख्य काम होगा और बाकी काम अतिरिक्त प्रभार होगा।
सूत्रों का कहना है कि जिस फाइल के पेज नंबर 67 पर हेल्थ सेक्रेटरी ने जे
पी नड्डा की सारी बातें खारिज की हैं, उसी फाइल के पेज नंबर 71 पर नड्डा की
मांगों का समर्थन करते हुए संजीव को हटा दिया गया। सवाल है कि मोदी के
हस्तक्षेप के बाद भी क्या संजीव को हटाने के पीछे की वजह का पर्दाफाश होगा
या समय के साथ बात ऐसे ही दब जाएगी?
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