मुंबई। भारत पर विदेशी कर्ज पिछले वित्त वर्ष के 13 फीसद और बढ़ गया हैं। यह कर्ज अब बढ़कर 390 अरब डॉलर पहुंच गया है। रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को आंकड़े जारी करते हुए बताया कि छोटी अवधि के कर्ज और विदेशी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में इजाफे के चलते विदेशी कर्ज में इजाफा हुआ है।
आरबीआइ ने अपने बयान में कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार मार्च, 2012 में कर्ज का 85.2 फीसद था। यह मार्च, 2013 में घटकर 74.9 फीसद रह गया। ट्रेड क्रेडिट की वजह से विदेशी कर्ज बढ़ता चला गया। इस दौरान छोटी अवधि के क्रेडिट बढ़े।
वहीं ईसीबी और रुपये आधारित एनआरआइ जमा में भी इजाफा हुआ। इन सभी कारणों ने विदेशी कर्ज को बढ़ने का मौका दे दिया। आरबीआइ ने कहा कि डॉलर समेत विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले लगातार कमजोर होते रुपये ने भी स्थिति प्रतिकूल कर दी।
मार्च, 2012 में देश पर कुल विदेशी कर्ज 345.5 अरब डॉलर था। केंद्रीय बैंक ने बताया कि यदि रुपये की कीमत में उतार-चढ़ाव को हटा दें तो विदेशी कर्ज मार्च, 2013 तक 55.8 अरब डॉलर बढ़ जाता। कुल कर्ज में 120.9 अरब डॉलर के साथ 31 फीसद हिस्सेदारी ईसीबी, छोटी अवधि के कर्जो की 24.8 फीसद और एनआरआइ जमा की हिस्सेदारी 18.2 फीसद रही।
जीडीपी के मुकाबले कुल घरेलू बचत कम होकर 30.8 फीसद रही है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, वित्त वर्ष 2008 में यह 36.8 फीसद तक पहुंच गई थी। घरेलू बचत में कमी के लिए आरबीआइ ने लोगों द्वारा वित्तीय सेवाओं में निवेश से दूरी बनाने को जिम्मेदार ठहराया है।
यह जीडीपी का आठ फीसद ही रहा है। वित्त वर्ष 2008 में यह 11.6 फीसद रहा था। रिपोर्ट में बताया गया है कि निवेशकों ने वित्तीय सेवाओं के बजाय रीयल एस्टेट और सोने में निवेश करना शुरू कर दिया है।