आज मानव अपने रंग-रूप को देखकर गर्वित है लेकिन 30 लाख साल पहले वह कैसा दिखता होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। किन्तु वैज्ञानिकों की एक नई खोज को देखें तो 30 लाख साल पहले के इंसान के रंग-रूप और चाल-ढाल के बारे में एक रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी को प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी मानव प्रजाति का पता लगाने में सफलता हासिल की है जो 30 लाख साल पुराने दो पैरों पर चलने वाले नरवानर और इंसान के बीच की एक अहम कड़ी कही जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय का मानव आधा बंदर और आधा इंसानों के जैसा दिखता था।
आज मानव
अपने रंग-रूप को देखकर गर्वित है लेकिन 30 लाख साल पहले वह कैसा दिखता होगा
इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। किन्तु वैज्ञानिकों की एक नई खोज को देखें
तो 30 लाख साल पहले के इंसान के रंग-रूप और चाल-ढाल के बारे में एक रोचक और
महत्वपूर्ण जानकारी को प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका के
वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसी मानव प्रजाति का पता लगाने में सफलता
हासिल की है जो 30 लाख साल पुराने दो पैरों पर चलने वाले नरवानर और इंसान
के बीच की एक अहम कड़ी कही जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुमानव
की इस नई प्रजाति की खोज दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से 50 किमी दूर
राइजिंग स्टार गुफाओं में बनी 15 प्राचीन कब्रों में की गई। वैज्ञानिकों का
कहना है कि इन कब्रों में इस प्रजाति की मानवों की हड्डियों के 1,500 से
अधिक टुकड़े पाए गए जो कम से कम 15 व्यक्तियों के हैं। मानव की इस नई
प्रजाति को होमो नलेदी नाम से जाना जा रहा है। इस प्रजाति के कंकालों को
एक जीवाश्म की खोज के दौरान प्राप्त किया जा सका जिसमें अलग-अलग उम्र के 15
आंशिक कंकाल प्राप्त हुए हैं जो पुरुष, महिला, बुजुर्ग और शिशुओं के हैं।
इस खोज में एक बड़े मानव जीवाश्म की भी प्राप्ति हुई है जिसे अफ्रीकी
महाद्वीप के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी खोज कहा जा रहा है।
मानव
की इस नई प्रजाति के अध्ययन के प्रमुख विटवॉटर्सरैंड विश्वविद्यालय,
जोहान्ससबर्ग के प्रोफेसर ली बर्जर का कहना है होमो नलेदी को प्राचीन
नरवानर और मानव के बीच एक पुल के तौर पर देखा जा सकता है। मानव की इस नई
प्रजाति के हाथ तो हमारे जैसे ही थे किन्तु दिमाग हमसे आधा लगभग संतरे के
जितना था, साथ ही इनके दांत बहुत ही साधारण व छोटे थे। इस प्रजाति के पांव व
घुटनों की बनावट इस तरह की थी कि ये दो पैरों पर खड़े हो सकते थे। इनकी
अंगुलियां लंगूरों की तरह टेढ़ी थीं, अपना अधिकांश समय ये पेड़ों पर व्यतीत
करते थे। वैज्ञानिकों की इस खोज को ई लाईफ साइंस मैगजीन में प्रकाशित
किया गया है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक मानव की इस
प्रजाति के अध्ययन से यह तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि होमो नलेदी
की रचना आधे मनुष्य और आधे बंदर की तरह की थी जिन्हें गुफाओं में दफानाया
जाता था, अब इनके जन्म तथा विकास के बारे में और अधिक जानकारियां भी जुटाई
जा रही हैं। मानव की यह नई प्रजाति उसके पूर्वजों के बारे में कई रहस्यों
को उजागर करने में मददगार होगी।
सार इस समय का
मानव आधा बंदर और आधा इंसानों के जैसा दिखता था।