नोएडा पुलिस अपने कारनामों को लेकर घिरती जा रही है। जब एक महिला इंस्पेक्टर से ही सड़क पर खड़े ट्रैफिक होमगार्ड वसूली करेंगे तो आम जनता का क्या होगा इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है। ग्रेटर नोएडा थाने की प्रभारी होने के बावजूद लक्ष्मी चौहान को एक रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए भटकना पड़ा तो एक आम आदमी कैसे रिपोर्ट दर्ज करा सकता है।
हद तो उस समय हो गई जब पुलिस के
अधिकारियों ने मौके पर जाने की बात कही और घंटे तक नहीं पहुंचे। लक्ष्मी
चौहान ने इंस्पेक्टर होते हुए भी महिलाओं को असुरक्षित बताया और पुलिस
सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। जरा सोचिए! जब यूपी पुलिस अपने
ही महकमे के इंस्पेक्टर स्तर के एक महिला अधिकारी से इस तरह का बर्ताव कर
रहे हैं तो छिजारसी की छात्रा अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए कितनी
परेशान हुई होगी और कितने दफ्तरों के चक्कर लगाए होंगे जो उसे जान देनी पड़
गई। जिले की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं। ऐसे में प्रदेश
सरकार की ओर से भेजे गए एसएसपी, एसपी, डीएसपी आदि बड़े अधिकारी क्या कर रहे
हैं। मेरठ जोन में भी बैठे आईजी, डीआईजी ऐसे मामलों में प्रतिक्रिया देने
के बजाय शांत रहना पसंद करते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो पुलिस के बीच
तेरी भी चुप-मेरी भी चुप का खेल चल रहा है।
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