नई दिल्ली/नोएडा। भारत वर्ष की जब बात होती है तो राम की चर्चा मुख्य रूप से होती है। इसलिए रामलीला के जरिए प्रतिवर्ष उन्हे याद किया जाता है। लेकिन अब जनता तो श्रद्घा के लिए उन्हें याद करती है लेकिन नेताओं ने उन्हें राजनीति का चोला पहना दिया है।
अब रामलीला के जरिए ही नेता अपनी पब्लिसिटी में लगे हैं। अब तक दिल्ली में होने वाली सबसे बड़ी रामलीला में कांगे्रसी नेता आते रहे थे तो उस रामलीला पर कांग्रेस की छाप पड़ गई थी। इस बार पीएम मोदी को बुलाने की चर्चा चली तो हंगामा बरपा हो गया। कुछ जिम्मेदारों ने इस्तीफे लिख डाले तो कुछ गुटबाजी में लग गए।
नोएडा में यूं तो मुख्य रूप से तीन
रामलीलाएं होती है। मगर सेक्टर-12 में होने वाली रामलीला ऐसी है जो
राजनीतिक के बजाय सामाजिक लोगों द्वारा संचालित समिति कराती आ रही है। यह
रामलीला अभी तक राजनीति से अछूती है। इसके विपरित सेक्टर-21ए में होने
वाली रामलीला को आजकल सपा की रामलीला कहा जा रहा है तो सेक्टर-33 की
रामलीला को भाजपा का बताया जा रहा है। एक को पूर्व का तो एक को वर्तमान
सांसद का संरक्षण प्राप्त है। कमोवश ज्यादातर शहरों में रामलीला इसी तरह
चलती चली आ रही हैं। परंतु जनता को सियासत से कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह
जानती है कि राम तो सबके हैं।
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