नई दिल्ली। पहले महागठबंधन का अगुवा बनाया फिर महज पांच सीट देकर अपमानित किया। नतीजतन मोदी से मिले मुलायम, अमित शाह से मिले रामगोपाल और हो गया महागठबंधन का बंटाधार। यानि मिलना बिछडऩा तो दस्तूर हो गया महागठबंधन टूटकर चकनाचूर हो गया।
पिछले हफ्ते सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव
पीएम नरेंद्र मोदी से मिले थे। इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक हलकों में
तरह-तरह की चर्चाएं चल ही रही थीं कि बीते मंगलवार को सपा के महासचिव प्रो.
रामगोपाल यादव भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने उनके निवास पर पहुंचे।
इसके अगले ही दिन महागठबंधन टूट गया। खुद प्रो. रामगोपाल ने इसका एलान
किया। उन्होंने साफ कर दिया कि सपा अब अकेले अपने दम पर बिहार में
विधानसभा चुनाव लड़ेगी। सपा के इस फैसले का उसे खुद को भले ही फायदा कम हो
लेकिन फिर भी पांच से अधिक सीटें जीतने की स्थिति में तो बिहार में वह है।
महागठबंधन टूटने का भाजपा को काफी लाभ मिलेगा। राजनीतिज्ञ सपा के इस बदले
रुख को पिछले संसद सत्र से जोड़कर देख रहे हैं। संसद के शुरुआत में
सपा-बसपा ने विपक्ष के साथ दमखम के साथ हाथ मिलाकर सरकार की नाक में दम कर
दिया। इसी दौरान यादव सिंह प्रकरण की जांच हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी।
धीरे-धीरे महागठबंधन भी ठंडा पडऩे लगा। अचानक बदले इस राजनीतिक समीकरण का
प्रभाव बिहार चुनाव पर दिखाई देने लगा है। यहां पीएम के साथ-साथ भाजपा
अध्यक्ष अमित शाह के राजनीति करने की सराहना करनी होगी। वे एक दम शांत रह
कर अर्जुन की तरह चिडिय़ा की आंख पर निशाना लगाते हैं। इस बार भी शांत रहकर
अमित शाह जिस तरह से गोटियां बिछा रहे हैं उसका फायदा निश्चित तौर पर
भाजपा को होगा। क्योंकि सपा अब हर सीट पर चुनाव लड़ेगी तो महागठबंधन को
पलीता तो लगेगा ही। कहीं न कहीं महागठबंधन की टूट के लिए जदयू और राजद भी
जिम्मेदार हैं जिन्होंने सपा की हैसियत केवल पांच सीटों की आंकी। नीतीश
कुमार को छोड़ भी दें तो लालू ने न जाने ये कैसी रिश्तेदारी निभाई। लेकिन
नेताजी भी चुप बैठने वाले नहीं हैं।
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