नोएडा/लखनऊ। नोएडा व ग्रेटर नोएडा समेत प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण और रिजल्ट ज्येष्ठता पर आरक्षण की नई याचिका के रद्द होने के बाद यूपी के कई विभागों के करीब दस हजार पर अधिकारियों व कर्मचारियों पर डिमोशन (रिवर्ट) की तलवार लटक गई है। फैसले से साफ हो गया है कि प्रदेश सरकार को अपने वरिष्ठों की तुलना में 1997 से ऊंचे पदों पर बैठे आरक्षित वर्ग के लोगों को डिमोशन करना ही पड़ेगा।
1997 से 2015 तक 18 साल के समय के आधार पर
डिमोशन होने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्या का आकलन करें तो यह
बहुत बड़ी लगती है। लेकिन इस दौरान अलग-अलग समय ज्यादातर विभागों में
प्रमोशन में आरक्षण और परिणामी ज्येष्ठता पर अदालत के स्थगन आदेश के चलते
तथा 70-80 फीसदी लोगों के सेवानिवृत्त हो जाने से रिवर्ट होने वालों की
संख्या अनुमानत: दस हजार के आसपास ही होगी। ये सिर्फ मौजूदा पदों से
इधर-उधर होंगे। मुख्य सचिव आलोक रंजन पहले ही साफ कर चुके हैं कि सर्वोच्च
न्यायालय के फैसले के तहत जो लोग प्रभावित होंगे, सरकार उनमें से किसी का
भी वेतन कम नहीं करेगी। ज्ञात हो कि 2002 तक प्रदेश में सिर्फ पदोन्नति
में आरक्षण ही लागू था। लेकिन केंद्र द्वारा 2001 में पदोन्नति में आरक्षण
के साथ परिणामी ज्येष्ठता देने का कानून बनने के बाद 2002 में तत्कालीन
माया सरकार ने इसे लागू कर दिया। 2005 में तत्कालीन मुलायम सरकार ने
परिणामी ज्येष्ठता देने के फैसले को वापस ले लिया। पर 2007 में आई मायावती
सरकार ने फिर परिणामी ज्येष्ठता का नियम लागू कर दिया। वहीं इस उठापटक
के दौरान लोगों के न्यायालय जाने और स्थगन आदेश मिलने से ज्यादातर विभागों
में पदोन्नतियां हुई ही नहीं। इस फैसले पर हजारों कर्मचारियों का भविष्य
लटका हुआ है। ऐसे में उन लोगों को ज्यादा समस्या होगी जो ऊच्चें पदों पर
काम कर रहे हैं।
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