नई दिल्ली। सरकार की योजना तीन श्रम कानूनों को एक ही कोड में एकीकृत करने की है। इससे जहां श्रमिक यूनियन बनाना कठिन हो सकता है वहीं 300 तक श्रमिकों वाली कंपनियों के लिए बर्खास्तगी कार्रवाई करने के लिए किसी तरह की आधिकारिक मंजूरी की जरुरत नहीं होगी।
सरकारी अधिकारियों ने हालांकि कहा है कि प्रस्तावित कदमों का उद्देश्य व्यापार को आसान बनाने को प्रोत्साहित करना है और ये अनिवार्य रूप से \'श्रमिक विरोधी╙ नहीं हैं।
ऐसे ही एक प्रस्ताव के अनुसार श्रमिक
यूनियन पंजीकरण के लिए श्रमिकोंं का कम से कम दस प्रतिशत या 100
कर्मचारियों की जरूरत होगी। मौजूदा व्यवस्था के तहत ऐसी कोई बाध्यता नहीं
है और सात सदस्यों से श्रमिक यूनियन बन सकती है। इसके अलावा केवल
कर्मचारियों को ही यूनियन बनाने की अनुमति होगी। उक्त सब प्रस्ताव
औद्योगिक संबंध विधेयक, 2015 की उस मसौदा श्रमिक संहिता का हिस्सा है जिसे
श्रम मंत्रायल ने तैयार किया है। इस विधेयक के जरिए औद्योगिक विवाद कानून
1947, ट्रेड यूनियंस कानून 1926 व औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) कानून
1946 को मिलाने का प्रस्ताव है।
श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी
ने कहा कि श्रम संहिता मसौदे के प्रस्तावों पर विचार के लिए छह मई को
यूनियन व उद्योग प्रतिनिधियों की बैठक होगी। मीडिया रिपोर्टों में इसे
\'श्रमिक विरोधी\' बताए जाने पर अधिकारी ने कहा,\' यह गलत धारणा है कि यह
विधेयक श्रमिक विरोधी है क्योंकि हमने रोजगार छिनने के कतिपय मामलों में
मुआवजा बढाकर 45 दिन करने का प्रस्ताव किया है जबकि मौजूदा प्रावधानों के
तहत यह 15 दिन है।\'
नियुक्ति प्रक्रिया में लचीलापन लाये जाने के
सरकार के प्रयासों पर अधिकारी ने कहा,\' यूनियनों को श्रमिकों का सच्चा
प्रतिनिधि बनना चाहिए। इसके साथ ही कानून भी मौजूदा समय के हिसाब से होना
चाहिए।\'
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