नोएडा। सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही जाट आरक्षण रद्द किया तो जाट संगठन तुरंत सक्रिय हो गए। संयुक्त जाट आरक्षण समिति ने तुरंत प्रेस कांफ्रेस कर कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर करने की बात कही। समिति के अध्यक्ष एचपी सिंह ने कहा कि कोट, संसद और सड़क तक आरक्षण की लड़ाई लड़ी जाएगी।
उन्होंने जाट आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के
आए फैसले पर काफी निराशा जताई। इस दौरान समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचपी
सिंह परिहार और महासचिव राजीव चौधरी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए
सरकार की ओर से जाट आरक्षण को चुनाव से ठीक पहले लागू करने और पुराना डाटा
उपलब्ध होने को आधार बना कर रद्द किया है, लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही
है कि पुराना डाटा कोर्ट में स्वीकार नहीं किया जा रहा है और नया सर्वे
सरकार की ओर से कराया नहीं जा रहा है, ऐसे में जाटों को इंसाफ कैसे मिलेगा?
जबकि सभी ओबीसी जाति को इसी प्रकार से केंद्र सरकार ने आरक्षण दिया है।
1993 में मंडल कमीशन लागू किया गया है। उस समय भी ओबीसी का डाटा करीब
13 वर्ष पुराना था, क्योंकि मंडल कमीशन 1979 में आया था। इसकी रिपोर्ट 1980
में आई थी। उस समय ओबीसी में कृषक के रूप में जाट आरक्षण में शामिल नहीं
हो सके। इसके बाद जब प्रदेश स्तर पर दबाव बना तो सबसे पहले 1999 में
राजस्थान सरकार ने जाट आरक्षण को प्रदेश में लागू किया। इसके बाद वर्ष 2000
में बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली ने प्रदेश में जाट
आरक्षण को लागू किया। मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने जाट आरक्षण को वर्ष
2002 में लागू किया। सबसे अंत में वर्ष 2012 में हरियाणा सरकार ने जाट
आरक्षण को प्रदेश स्तर पर लागू किया। इसके बाद बड़ी मशक्कत पर दो मार्च
2014 को केंद्र सरकार ने केंद्र में जाट आरक्षण दे दिया। चार मार्च को
इसका गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया, लेकिन राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने इस
मामले पर नकारात्मक रिपोर्ट दी है। उन्होंने बताया कि अब इस मामले विस्तार
से लड़ाई होगी। जिसमें पहले तो पांच जजों की बेंच पर रिव्यू याचिका दायर की
जाएगी। इसके बाद देश भर में जितनी भी जगह जाट वोटों से जनप्रतिनिधि जीत कर
संसद में पहुंचे है। उन पर दबाव बनाया जाएगा कि वह संसद में जाट आरक्षण की
बात को प्रमुखता से उठाए। इसके अलावा जल्द ही सभी सदस्यों की बैठक कर सड़क
पर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
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