एक पुरानी कहावत है कि मंजिल हासिल करना आसान होता है उसपर बने रहना मुश्किल....! आजकल आम आदमी पार्टी में चल रहे घमासान पर यह कहावत बिल्कुल खरी उतरती है।
क्योंकि तमाम कोशिशें और मेहनत के बाद
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने एक बड़ी जीत तो हासिल कर ली लेकिन पावर आते
ही अपने अंदरूनी कलह पर नियंत्रण नहीं रख सकी। जाहिर है इससे पार्टी की छवि
पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसलिए यह जरूरी है कि जिन वजहों से पार्टी की
यह फजीहत हो रही है उन वजहों को लेकर पार्टी हाईकमान को सख्ती बरतनी चाहिए
ताकि आइंदा से पार्टी के अंदर पार्टी के ही नेता कलह पैदा न कर सकें। हालिया
जो बवाल हुआ है उसके जनक भले ही योगेन्द्र यादव व प्रशांत भूषण दिख रहे
हों लेकिन जानकारों की माने तो उनसे कहीं ज्यादा इस पूरे विवाद की जड़ भूषण
परिवार ही है। उम्र के इस मुहाने पर भूषण परिवार को जब एक मौका समाजसेवा
और समाज को नई दिशा देने का अवसर मिला है तो बड़ी महत्वकांक्षाओं से हट कर
उसे इस अवसर को भुनाना चाहिए। अन्यथा तो वह अलग-थलग पड़ जाएगा। फिर से
उन्हें अपने आपको मीडिया और समाज में सम्मान पाने के लिए जनहित याचिकाओं और
आरटीआई पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। अभी भी वक्त है कि वक्त की नजाकत को
भूषण परिवार समझ ले। हालांकि चुनाव से पूर्व पार्टी को तेवर दिखाने वाले
शांतिभूषण ने इस बाबत साकारात्मक रूख दिखाया है। भूषण परिवार को यह
नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली की जनता ने उनके नाम पर नहीं बल्कि \'पांच साल
केजरीवाल के नाम पर मुहर लगाई है। इसलिए भूषण परिवार को अपनी इगो को त्याग
कर पार्टी ने जो महत्वपूर्ण स्थान व सम्मान दे रखा है उसको मेंटेन करे।
निश्चित तौर पर इससे भूषण परिवार का और नाम होगा।
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