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( 07/05/2020)  ये क्या हो रहा है कमिश्नर साब.. दिल्ली पुलिस योद्धा का हुआ अंतिम संस्कार लेकिन पीछे छोड़ गया सरकारी दावों की पोल। ( INSMEDIA.IN )

 
 

ये क्या हो रहा है कमिश्नर साब.. दिल्ली पुलिस योद्धा का हुआ अंतिम संस्कार लेकिन पीछे छोड़ गया सरकारी दावों की पोल।

अभी कुछ देर पहले दिल्ली पुलिस के होनहार व जांबाज सिपाही अमित राणा का अंतिम संस्कार किया गया । अपने फर्ज को निभाते हुए यह योद्धा कॉरॉना के खिलाफ लड़े जा रहे युद्ध में शहीद हो गया । क्या हम लोगो को इनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना कर के उन्हे श्रद्धांजलि दे के चुप हो जाना चाहिए ?मामला इतना सरल नहीं है जितना उपरोक्त चार पंक्तियों से प्रतीत हो रहा है । हमारे कितने ही भाई बहन सम्बन्धी, मित्रगण, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस समय कोरोना के खिलाफ लड़े जा रहे इस युद्ध में लड़ते हुए अपना फर्ज निभा रहे हैं तथा कितनों ने ही इस लड़ाई में अपना बलिदान दिया है। किन परिस्थितियों में ये लोग अपना काम कर रहे है  तथा किन  परिस्थितियों में इन्होंने अपना बलिदान दिया है यह चीजें आम जनता तक  शायद ही पहुंच पाई है।
 अभी मैंने अमित राणा के अंतिम समय में जो दोस्त उनके साथ उनकी टेलीफोन पर हुई वार्ता की रिकॉर्डिंग सुनी। हम सोच भी नहीं सकते कि उन्होंने किन परिस्थितियों में अपनी जान की परवाह ना करते हुए कांस्टेबल अमित राणा की की जान बचाने की भरसक कोशिश की । अमित राणा को उनके साथी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक लेकर भागते रहे  पर किसी भी हॉस्पिटल में उन्हे दाखिला नहीं मिला, यहा तक कि अमित राणा के  लिए कोई एम्बुलेंस तक नहीं उपलब्ध कराई गई तथा उनके साथी अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपनी खुद की गाड़ी में वह अमित को लेकर एक हस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भागते रहे।
 यह बड़े दुख का विषय है कि कॉरोना  के खिलाफ इस लड़ाई में हमारे सुरक्षा बल, स्वास्थ्य विभाग , दिल्ली पुलिस व नगर निगम के कर्मचारी अपने जान की परवाह ना करते हुए अपना कर्तव्य निभा रहे हैं । दूसरी तरफ उन्हें अगर कुछ हो जाता है तो तमाम सरकारी दावों के बावजूद आज भी उनके इलाज की कोई भी सुचारू व्यवस्था कम से कम इस मामले में तो नजर नहीं आई । अमित राणा को लेकर सबसे पहले उनके साथी उन्हे शायद हैदरपुर स्थित किसी करोना सेंटर में लेकर गए परंतु वहां पर कोई भी चिकित्सीय सहायता उन्हे नहीं मिली तत्पश्चात वे उन्हें लेकर डॉक्टर अंबेडकर हॉस्पिटल गए जोकि दिल्ली के काफी बड़े सरकारी हॉस्पिटल में से एक है परंतु वहां भी उन्हें यथोचित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई इसके बाद वे उन्हें लेकर तीसरे हॉस्पिटल दीपचंद बंधु हॉस्पिटल अशोक विहार  गए  जहां पर उन्हे केवल उनका कोरोना टेस्ट ही किया गया तथा  उन्हे दाखिल ना करके घर ले जाने की सलाह डॉक्टर द्वारा दी गई । उसके बाद इनके साथी उन्हे एलएनजेपी हॉस्पिटल लेकर गए जहां पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो गई। उपरोक्त सारे प्रकरण से स्पष्ट है कि अमित राणा की मौत स्पष्ट रूप से चिकित्सीय सहायता ना मिलने से हुई है । टेस्ट की रिपोर्ट आने तक उनको दाखिल ना करना, इलाज शुरू ना करना गंभीर खामियों को उजागर करता है । शायद उनको सही समय पर चिकित्सीय सहायता मिल जाती तो शायद उनको बचाया जा सकता था । अभी भी अगर किसी सरकारी कर्मचारी को कोरोना का संक्रमण हो जाता है तो उसे उचित समय पर चिकित्सीय सहायता उपलब्ध हो जाएगी या उसे समय पर किसी हॉस्पिटल में दाखिल कर लिया जाएगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है। जब कोई सरकारी कर्मचारी इस प्रकार की परिस्थितियों में जहा इस समय जीवन और मरण का कोई भी भरोसा नहीं है डयूटी करता है तो उसे यह विश्वास होता है कि सरकार और उसका विभाग उसके साथ खड़ा है तथा अगर उसे कुछ हो जाता है या आवश्यकता होने पर यह लोग अवश्य उसके लिए कुछ ना कुछ करेंगे । इसी भरोसे के साथ वह वर्दी पहने हुए सैकड़ों की भीड़ के सामने अकेला खड़ा हो जाता है । इसी भरोसे के साथ एक सफाई कर्मचारी एक प्लास्टिक का कवर पहनकर संक्रमित वार्ड के अंदर सफाई करने के लिए मौत के मुंह में प्रवेश कर जाता है । परंतु अगर उन्हें आपातकाल में उचित समय पर चिकित्सीय या मानवीय सहायता नहीं मिलती है तो निश्चित रूप से उनका मनोबल प्रभावित होता है तथ भरोसा भी टूटता है ।
सरकार से विनती है की इस पूरे प्रकरण की जांच करा कर यह सुनिश्चित करें की इस पूरे घटनाक्रम में क्या क्या कमिया रही कहां कहां चूक हुई और सरकार के प्रयासों में अभी और क्या-क्या किया जाना बाकी है ताकि हम भविष्य में अपने जवानों तथा कर्मचारियों व अधिकारियों को इस आपातकाल में उचित चिकित्सीय सहायता उपलब्ध करा सकें ताकि किसी और अमित राणा को हमें खोना ना पड़े । याहिगर हम ऐसा कर सके तो यही उनके लिए हमारी श्रद्धांजलि होगी। साभार-
मंजीत राणा की वाल से--

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