नोएडा। सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा वेस्ट यानि नोएडा एक्सटेंशन के साथ-साथ नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे की टेंशन भले ही खत्म कर दी हो। लेकिन हकीकत में ये आदेश उस शेर की तरह हैं \'\'और भी गम हैं जमाने में...... मोहब्बत के सिवा।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने आए दिन होने
वाले किसान आंदोलनों से तो बड़ी राहत प्रदान कर दी है। लेकिन क्या इससे इन
तीनों शहरों के विकास को पर लग जाएंगे। यह अभी आसान दिखाई नहीं पड़ता है।
क्योंकि अभी भी कई ऐसी बाधाएं हैं जिसको पार करना प्राधिकरण, बिल्डर व
निवेशकों को लिए काफी मुश्किल होगा। 1. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) बिल्डरों
के काम करने के तरीके से पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है जिसके चलते आए
दिन एनजीटी के नए-नए आदेश उनके लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं। जैसे निर्माण
के लिए पानी का दोहन न करने, मैटेरियल को ढक कर लाने-ले जाने, नदियों से
दूरी बनाए रखने आदि ऐसे अनेक मामले हैं जिनसे पार पाना बिल्डरों के लिए
आसान नहीं होगा। 2. बढ़े मुआवजे की रकम तीनों प्राधिकरणों के लिए
बढ़े हुए 64 फीसदी मुआवजे की राशि जुटाना एक बड़ी चुनौती होगा। क्योंकि
नोएडा को छोड़कर बाकी दोनों प्राधिकरण खुद कर्जे में चल रहे हैं। ऐसे में
किसानों को बढ़ा मुआवजा देना निश्चित तौर पर उसके लिए परशानी का सबब होगा। 3. दस फीसदी आबादी की जमीन तीनों
प्राधिकरणों के लिए आबादी के लिए किसानों को दस फीसदी जमीन दे पाना भी एक
बड़ी चुनौती होगा। खास तौर से नोएडा में तो पहले ही जमीन की कमी है। 4. अधिग्रहित जमीन पर कब्जा लेना तीनों
प्राधिकरणों के लिए जो एक बड़ी समस्या सामने आने वाली है वह है उन
अधिग्रहित जमीनों पर कब्जा लेने की जिनपर लोग अवैध रूप से न केवल अपनी
आबादी बनाए बैठे हैं बल्कि कहीं भूखण्ड के रूप तो कहीं फ्लैट बना बनाकर
अथवा मार्केटों का निर्माण कर जमीन को बेच दिया गया है। 5. वसूली प्राधिकरण
बढ़ा मुआवजा देने के लिए बिल्डर्स से अतिरिक्त राजस्व वसूलने की बात कह
रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि जो बिल्डर अपनी किस्तें नहीं चुका पा रहे
हैं वे अतिरिक्त शुल्क कहां से देंगे। भले ही सुप्रीम कोर्ट से राहत
मिल गई है। लेकिन तीनों प्राधिकरणों के लिए अभी राह बहुत मुश्किल है। इसके
लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ-साथ निवेशकों को भरोसे में लेना होगा।
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