ज्यादा पेंटोग्राफ
फेज-3 की दोनों लाइनों पर चलने वाली ट्रेनों को एक्स्ट्रा पावर मिल सके, इसके लिए एक खास तरह से डिजाइन किए हुए मेट्रो कोच मंगाए जा रहे हैं। मेट्रो ट्रेनें बिजली से चलती हैं। इसके लिए मेट्रो ट्रेन के कोच के ऊपर पेंट्रोग्राफ लगाया जाता है, जो मेट्रो ट्रैक के ऊपर लगी बिजली की हाई वोल्टेज लाइन को टच करता है। इसके जरिए ट्रेनों की मोटर को पावर सप्लाई मिलती है। अभी मेट्रो नेटवर्क में जितनी भी ट्रेनें चल रही हैं, उन सभी ट्रेनों में दो कोच पर एक पेंट्रोग्राफ लगा हुआ है, जो मेट्रो ट्रेन में लगी मोटर को पावर सप्लाई करता है।
एवरेज स्पीड और फ्रीक्वेंसी बढ़ेगी
- ट्रेनें जल्दी से से पिकअप ले सकेंगी और तेज स्पीड से चल सकेंगी।
- प्लैटफॉर्म पर आते वक्त और प्लैटफॉर्म से निकलते वक्त ट्रेनों को रोकने और फिर से चलाने में लगने वाला टाइम भी कुछ कम हो जाएगा।
- अभी मेट्रो ट्रेनों की एवरेज स्पीड 35 किमी प्रति घंटा है, लेकिन फेज-3 में लाइन-7 और 8 पर ट्रेनों की एवरेज स्पीड बढ़कर 40 किमी प्रति घंटा तक हो जाएगी।
- इसका सीधा असर ट्रेनों की फ्रीक्वेंसी पर पड़ेगा। अभी जहां पीक आवर में ढाई मिनट के अंतराल पर मेट्रो ट्रेनें मिलती हैं, वहीं इन दोनों लाइनों पर पीक आवर में दो या सवा दो मिनट के अंतर पर ही ट्रेनें मिल जाया करेंगी।
- ट्रेनों की स्पीड बढ़ने से ओवरऑल जर्नी टाइम भी कम होगा और एक घंटे की जर्नी करीब 45 मिनट में ही पूरी हो जाएगी।
अभी
अभी मेट्रो नेटवर्क में जितनी भी ट्रेनें चलती हैं, उन पर एक पेंटोग्राफ पहले कोच पर, दूसरा पेंटोग्राफ तीसरे या चौथे कोच पर और तीसरा पेंटोग्राफ आखिरी कोच पर लगा है।
फेज 3
फेज-3 की ट्रेनों में पहला पेंटोग्राफ पहले कोच पर, दूसरा पेंटोग्राफ तीसरे कोच पर, तीसरा पेंटोग्राफ चौथे कोच पर और चौथा पेंटोग्राफ आखिरी कोच पर लगा होगा।
जल्द आएगा नया सिग्नल सिस्टम फेज-3 में ट्रेनों की स्पीड और फ्रीक्वेंसी बढ़ाने में सिग्नलिंग सिस्टम भी अहम रोल निभाएगा। अभी ऑटोमेटिक ट्रेन कंट्रोल सिस्टम के जरिए ट्रेनों को ऑपरेट किया जाता है, लेकिन फेज-3 में डीएमआरसी नया कम्यूनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (सीबीटीसी) लगाने जा रही है। इसकी एक्युरेसी इतनी जबर्दस्त होगी कि सिर्फ 100 सेकंड की फ्रीक्वेंसी पर भी मेट्रो ट्रेनें चलाई जाएंगी।
लाइन-7 और 8 पर डीएमआरसी यही सिग्नल सिस्टम लगाने जा रही है। इस आधुनिक रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम में टेलीकम्यूनिकेशन के जरिए दो ट्रेनों के बीच की दूरी को मेंटेन किया जाता है। नए सिग्नलिंग सिस्टम की वजह से ही इन दोनों रूट पर 8 कोच वाली मेट्रो भी नहीं चलाई जा सकेंगी।